Sunday, 1 June 2014

सिंह (Leo) राशि स्वास्थ्य और रोग

इस राशि के जातकों की वाणी और चाल में शालीनता पायी जाती है.इस राशि वाले जातक सुगठित शरीर के मालिक होते हैं.नॄत्य करना इनकी आदत होती है,अधिकतर इस राशि वाले या तो बिलकुल स्वस्थ रहते है,या फ़िर आजीवन बीमार रहते हैं,जिस वारावरण में इनको रहना चाहिये,अगर वह न मिले,इनके अभिमान को कोई ठेस पहुंचाये,या इनके प्रेम मेम कोई बाधा आये,तो यह लोग अपने मानसिक कारणों से बीमार रहने लगते है,इनके लिये भदावरी ज्योतिष की यह कहावत पूर्ण रूप से खरी उतरती है,कि मन से तन जुडा है,और जब मन बीमार होगा तो उसका प्रभाव तन पर पडेगा,अधिकतर इस राशि के लोग रीढ की हड्डी की बीमारी या चोटों से अपने जीवन को खतरे में डाल लेते हैं,और इस हड्डी का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर होने से,चोट अथवा बीमारी से शरीर का वही भाग निष्क्रिय हो जाता है,जिस भाग में रीढ की हड्डी बाधित होती है.वैसे इस राशि के लोगों के लिये ह्रदय रोग,धडकन का तेज होना,लू लगना,और संधिवात ज्वर होना आदि.

सिंह राशि (Economical Condition of Leo) आर्थिक गतिविधिया

इस राशि वाले जातक कठोर मेहनत करने के आदी होते हैं,और राशि के प्रभाव से धन के मामलों में बहुत ही भाग्यशाली होते हैं,पंचम राशि का प्रभाव कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार इनको तुरत धन वाले क्षेत्रों मे भेजता है,और समय पर इनके द्वारा किये गये पूर्व कामों के अनुसार ईश्वर इनको इनकी जरूरत का चैक भेज देता है.इस राशि वाले जातक जो भी काम करते हैं वे दूसरों को अस्मन्जस में डाल देने वाले होते है,लोग इनके कामों को देखकर आश्चर्य मे पड जाते हैं.स्वर्ण,पीतल,और हीरा जवाहरात के व्यवसाय इनको बहुत फ़ायदा देने वाले होते हैं,सरकार और नगर पालिका वाले पद इनको खूब भाते हैं.

सिंह (Leo) राशि प्रकॄति और स्वभाव

सिंह राशि शाही राशि मानी जा्ती है,सोचना शाही,करना शाही,खाना शाही,और रहना शाही,इस राशि वाले लोग जुबान के पक्के होते हैं,उनके अन्दर छछोडपन वाली बात नही होती है,अपनी मर्यादा मे रहना,और जो भी पहले से चलता आया है,उसे ही सामने रख कर अपने जीवन को चलाना,इस राशि वाले व्यक्ति से सीखा जा सकता है.सिह राशि वाला जातक जब किसी के घर जायेगा,तो वह किसी के द्वारा दिये जाने वाले आसन की आशा नही करेगा,वह जहां भी उचित और अपने लायक आसन देखेगा,जाकर बैठ जायेगा,वह जो खाता है वही खायेगा,अन्यथा भूखा रहना पसंद करेगा,वह आदेश देना जानता है,किसी का आदेश उसे सहन नही है,जिस किसी से प्रेम करेगा,उसके मरते दम तक निभायेगा,जीवन साथी के प्रति अपने को पूर्ण रूप से समर्पित रखेगा,अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी का आना इस राशि वाले को कतई पसंद नही है,और सबसे अधिक अपने जीवन साथी के बारे में वह किसी का दखल पसंद नही कर सकता है,

सिंह (Leo) लगन

जिन व्यक्तियों के जन्म समय में चन्द्रमा सिंह लगन मे होता है,वे सिंह राशि के जातक कहलाते हैं,जो इस लगन में पैदा होते हैं वे भी इस राशि के प्रभाव मे होते है.पांडु मिट्टी के रंग वाले जातक,पित्त और वायु विकार से परेशान रहने वाले लोग,रसीली वस्तुओं को पसंद करने वाले होते हैं,कम भोजन करना और खूब घूमना,इनकी आदत होती है,छाती बडी होने के कारण इनमे हिम्मत बहुत अधिक होती है और मौका आने पर यह लोग जान पर खेलने से भी नही चूकते.इस लगन में जन्म लेने वाला जातक जीवन के पहले दौर मे सुखी,दूसरे में दुखी और अन्तिम अवस्था में पूर्ण सुखी होता है.

सिंह (Leo) राशि नक्षत्र चरण और उनके फ़ल

  • मघा के प्रथम चरण का मालिक केतु-मंगल है,जो जातक में दिमागी रूप से आवेश पैदा करता है.
  • द्वितीय चरण के मालिक केतु-शुक्र है,जो जातक में सजावटी और सुन्दरता के प्रति भावना को बढाता है.
  • तीसरा चरण केतु-बुध के अन्तर्गत आता है,जो जातक में कल्पना करने और हवाई किले बनाने के लिये सोच पैदा करता है,
  • चौथा चरण चन्द्र-केतु के अन्तर्गत आता है,जो जातक में की जाने वाली कल्पना शक्ति का विकास करता है.
  • पूर्वाफ़ाल्गुनी नक्षत्र का प्रथम चरण शुक्र-सूर्य के सानिध्य में जातक को स्वाभाविक प्रवॄत्तियों की तरफ़ बढाता है.
  • दूसरा चरण सुन्दरता का बोध करवाने में सहायक होता है.
  • तीसरा चरण सुन्दरता के प्रति मोह देता है और कामुकता की तरफ़ भेजता है.
  • चौथा चरण जातक के द्वारा किये गये वादे को क्रियात्मक रूप मे बदलने में सहायता करता है.
  • उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र का प्रथम चरण जातक में अपने प्रति स्वतन्त्रता की भावना भरता है,और जातक को किसी की बात न मानने के लिये बाध्य करता है.

सिंह (Leo) राशि

सिंह या शेर
सिंह (Leo) राशि चक्र की पाचवीं राशि है.और पूर्व दिशा की द्योतक है.इसका चिन्ह शेर है.इसका विस्तार राशि चक्र के 120 अंश से 150 अंश तक है.सिंह राशि का स्वामी सूर्य है,और इस राशि का तत्व अग्नि है.इसके तीन द्रेष्काण और उनके स्वामी सूर्य,गुरु,और मंगल,हैं.इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण,पूर्वाफ़ाल्गुनी के चारों चरण,और उत्तराफ़ाल्गुनी का पहला चरण आता है.

Tuesday, 27 May 2014

कर्क राशि (Cancer Health & Deasease) स्वास्थ्य - रोग

कर्क जातक बचपन में प्राय: दुर्बल होते हैं,किन्तु आयु के साथ साथ उनके शरीर का विकास होता जाता है,चूंकि कर्क कालपुरुष की वक्षस्थल और पेट का प्रतिधिनित्व करती है,अत: कर्क जातकों को अपने भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है,अधिक कल्पना शक्ति के कारण कर्क जातक सपनों के जाल बुनते रहते हैं,जिसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है,उन्हें फ़ेफ़डों के रोग,फ़्लू,खांसी,दमा,श्वास रोग,प्लूरिसी, और क्षय रोग भी होते हैं,उदर रोग,और स्नावयिक दुरबलता,भय की भावना,मिर्गी,पीलिया,कैंसर, और गठिया रोग भी होते देखे गये है.

कर्क राशि (Cancer Economical Condition of Cancer) आर्थिक गतिविधिया

कर्क जातक बडी बडी योजनाओं का सपना देखने वाले होते हैं,परिश्रमी और उद्यमी होते हैंउनको प्राय: अप्रत्यासित सूत्र या विचित्र साधनों से और अजनबियों के संपर्क में आने से आर्थिक लाभ होता है,कुच अन्य आर्थिक क्षेत्र जिनमे वो सफ़ल हो सकते है,उअन्के अन्दर जैसे दवाओं और द्रव्यों का आयात,अन्वेशण और खोज,भूमि या खानों का विकास,रेस्टोरेन्ट,जल से प्राप्त होने वाली वस्तुओं,और दुग्ध पदार्थ आदि,वे जन उपयोगी बडी बडी कम्पनियों में धन लगाना भी उनके लिये लाभदायक रहता है.

कर्क राशि (Cancer) प्रकॄति - स्वभाव


कर्क जातकों की प्रवॄति और स्वभाव समझने के लिये हमें कर्क के एक विशेष गुण की आवश्य ध्यान देना होगा,कर्क केकडा जब किसी वस्तु या जीव को अपने पंजों के जकड लेता है,तो उसे आसानी से नही छोडता है,भले ही इसके लिये उसे अपने पंजे गंवाने पडें. कर्क जातकों में अपने प्रेम पात्रों तथा विचारोम से चिपके रहने की प्रबल भावना होती है,यह भावना उन्हें ग्रहणशील,एकाग्रता,और धैर्य के गुण प्रदान करती है,उनका मूड बदलते देर नही लगती है,उनके अन्दर अपार कल्पना शक्ति होती है,उनकी स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है,अतीत का उनके लिये भारी महत्व होता है,कर्क जातकों को अपने परिवार में विशेषकर पत्नी तथा पुत्र के के प्रति प्रबल मोह होता है,उनके बिना उनका जीवन अधूरा रहता है,मैत्री को वे जीवन भर निभाना जानते हैं,अपनी इच्छा के स्वामी होते हैं,तथा खुद पर किसी भी प्रकार का अंकुश थोपा जाना सहन नहीं करते,ऊंचे पदों पर पहुंचते हैं,और भारी यश प्राप्त करते हैं,वो उत्तम कलाकार,लेखक,संगीतज्ञ, या नाटककार बनते हैं,कुछ व्यापारी या उत्तम मनोविश्लेषक बनते हैं,अपनी गुप्त विद्याओं धर्म या किसी असाधारण जीवन दर्शन में वो गहरी दिलचस्पी पैदा कर लेते हैं.

कर्क लगन (Cancer)

जिन जातकों के जन्म समय में निरयण चन्द्रमा कर्क राशि में संचरण कर रहा होता है,उनकी जन्म राशि कर्क मानी जाती है,जन्म के समय लगन कर्क राशि के अन्दर होने से भी कर्क का ही प्रभाव मिलता है,कर्क लगन मे जन्म लेने वाला जातक श्रेष्ठ बुद्धि वाला,जलविहारी,कामुक,कॄतज्ञ,ज्योतिषी,सुगंधित पदार्थों का सेवी,और भोगी होता है,उसे शानो शौकत से रहना पसंद होता है,वो असाधरण प्रतिभा से अठखेलियां करता है,तथा उत्कॄष्ट आदर्श वादी,सचेतक, और निष्ठावान होता है,उसके रोम रोम में मातॄ-भक्ति भरी रहती है.

कर्क राशि (Cancer) नक्षत्र चरणफ़ल

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  • पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण के मालिक हैं गुरु-चन्द्रमा,जातक के अन्दर कल्पनाशीलता भरते हैं.
  • पुष्य नक्षत्र के पहले चरण के मालिक शनि-सूर्य हैं,जो कि जातक को मानसिक रूप से अस्थिर बनाते हैं,और जातक में अहम की भावना बढाते हैं,कार्य पिता के साथ होने से जातक को अपने आप कार्यों के प्रति स्वतन्त्रता नही मिलने से उसे लगता रहता है,कि उसने जिन्दगी मे कुछ कर ही नही पाया है,जिस स्थान पर भी वह कार्य करने की इच्छा करता है,जातक को परेशानी ही मिलती है. जिसके
    साथ मिलकर कार्य करने की कोशिश करता है,सामने वाला भी कार्य हीन होकर बेकार हो जाता है.भदावरी ज्योतिष के अनुसार एक वॄतांत मिलता है,कि इस तरह का जातक अपने लिये लगातार पिता से हट कर कार्य करने की कोशिश करता है,वह सबसे पहले खान विभाग मे क्रेसर लगाकर काम करता है,और कुछ दिनो में वह खान विभाग बन्द कर देता है,खान (शनि) के बाद वह राजनीति (सूर्य) में जाने की कोशिश करता है,और कुछ दिनों मे वह सरकार ही गिर जाती है,वह फ़िर एक बार अपना भाग्य रेलवे के कामों की तरफ़ ले जाता है,और एक ठेकेदार के साथ मिलकर कार्य करने की कोशिश करता है,कुछ समय बाद जिस ठेकेदार के साथ मिलकर कार्य करता है,वह भी फ़ेल होकर घर बैठ जाता है,तीसरी बार जमीनी कामों मे अपना भाग्य अजवाने के लिये वह जमीनो को खरीदने बेचने का काम करना चाहता है,लेकिन जिन जमीनो के लिये वह सौदा करना चाहता है,उन जमीनो के मालिक अपना फ़ैसला ही बदल कर बेचने की मनाही कर देते है.इस प्रकार से बाद में वह अपने पिता के द्वारा चलाया जाने वाला एक छोटा सा जनरल स्टोर पिता के साथ चलाता है,और आज भी पैंतालीस साल की उम्र में बेरोजगारी का जीवन बिता रहा है.
  • पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण के मालिक शनि-बुध हैं,शनि कार्य और बुध बुद्धि का ग्रह है,दोनो मिलकर कार्य करने के प्रति बुद्धि को प्रदान करने के बाद जातक को होशियार बना देते है,जातक मे भावनात्मक पहलू खत्म सा हो जाता है और गम्भीरता का राज हो जाता है.
  • तीसरे चरण के मालिक ग्रह शनि-शुक्र हैं,शनि जातक के पास धन और जायदाद देता है,तो शुक्र उसे सजाने संवारने की कला देता है.शनि अधिक वासना देता है,तो शुक्र भोगों की तरफ़ जाता है.
  • चौथे चरण के मालिक शनि-मंगल है,जो जातक में जायदाद और कार्यों के प्रति टेकनीकल रूप से बनाने और किराये आदि के द्वारा धन दिलवाने की कोशिश करते हैं,शनि दवाई और मंगल डाक्टर का रूप बनाकर चिकित्सा के क्षेत्र में जातक को ले जाते हैं.
  • अश्लेशा नक्षत्र के पहले चरण के मालिक बुध-गुरु है,बुध बोलना और गुरु ज्ञान के लिये,जातक को उपदेशक बनाने के लिये दोनो अपनी शक्ति प्रदान करते है,बुध और गुरु की युती जातक को धार्मिक बातों को प्रसारित करने के प्रति भी अपना प्रभाव देते हैं.
  • दूसरे चरण के मालिक बुध-शनि है,जो जातक को बुध आंकडे और शनि लिखने का प्रभाव देते हैं.
  • तीसरे चरण के मालिक भी बुध-शनि हैं,जो कि कम्प्यूटर आदि का प्रोग्रामर बनाने में जातक को सफ़लता देते है,जातक एस्टीमेट बनाने मे कुशल हो जाता है.
  • चौथे चरण के मालिक बुध-गुरु होते हैं,जो जातक में देश विदेश में घूमने और नई खोजों के प्रति जाने का उत्साह देते है.

कर्क राशि (Cancer)

राशि चक्र की यह चौथी राशि है,यह उत्तर दिशा की द्योतक है,तथा जल त्रिकोण की पहली राशि है,इसका चिन्ह केकडा है,यह चर राशि है,इसका विस्तार चक्र 90 से 120 अंश के अन्दर पाया जाता है,इस राशि का स्वामी चन्द्रमा है,इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी चन्द्रमा,मंगल और गुरु हैं,इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण,पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेशा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं.

मिथुन - स्वास्थ्य - रोग (Health & Desease) of Gemini

मिथुन राशि वालों का स्वास्थ्य कभी ठीक नही रहता है,लगातार दिमागी काम लेने से जैसे ही दिमाग में नकारात्मक प्रभाव का असर होता है फ़ौरन इनके पाचन तन्त्र पर प्रभाव पडता है,और सिर दर्द के साथ हाईपरटेन्सन जैसी बीमारियां इनके पास हमेशा मौजूद होती हैं,इनका मन ठीक है तो दुनिया इनके लिये ठीक होती है.मन के खराब होते ही इनका शरीर अस्वस्थ हो जाता है.जब इनका मन प्रसन्न हो तो ये लोग किसी भी बीमारी को भी चकमा दे सकते है.इन लोगों के लिये अगर कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह दे भी तो इनको मंजूर नही होती है,अधिक विज्ञापन वाली दवाइयों के प्रति इनका मन जाता रहता है.इनको अधिकतर जीभ के रोग,प्लूरिसी,निमोनिया,जैसे फ़ेफ़डों के रोग,सर्दी,जुकाम,ब्रोम्काइटिस,आईसीनोफ़ीलिया,और सांस वाले रोग इनको होने की संभावना रहती है.

मिथुन आर्थिक गतिविधियां Econimical Condition of Gemini

मिथुन राशि के जातक अधिक धन कमाने के चक्कर में लाटरी,शट्टेबाजी,शेयर बाजार,और कम्पनी प्रोमोटर के क्षेत्र में अपने को ले जाते हैं,और जल्दी लाभ न मिलकर उनको हानि ही मिलती है,इसके अलावा इनके जीवन के अन्दर उतार चढाव अपनी कन्या संतान के प्रति और उनके खर्चों के प्रति भी मिलती है.उनको बुद्धि वाले कामों मे ही सफ़लता मिलती है,अपने आप पैदा होने बाली मति और वाणी की चतुरता से इस राशि के लोग कुशल कूअनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी बन जाते हैं,हर कार्य में जिज्ञासा और खोजी दिमाग होने के कारण इस राशि के लोग अन्वेषण में भी सफ़लता लेते रहते हैं,और पत्रकार,लेखक,मीडिया कर्मी,भाषाओं की जानकारी,योजनाकार,भी बन सकते हैं.इनको यात्रा प्रिय होने के कारण एजेंट की भूमिका भी निभा सकते हैं,अच्छे बोलने वाले,उपदेश देने वाले,व्याख्याता, और उच्चाधिकारी भी बन जाते है.

मिथुन (Gemini) प्रकॄति और स्वभाव

सभी राशियों मे मिथुन राशि वालों को दुर्बोध माना जाता है.जैसा कि पहले बताया गया है कि इस राशि का निशान  स्त्री और पुरुष का जोडा है,जब एक ही मष्तिस्क सब कुछ करने में इतना माहिर होता है,तो जहां पर दो मष्तिस्क एक साथ होंगे तो वे क्या कर सकते है.नकारात्मक और सकारात्मक का एक साथ प्रभाव दिमागी रूप से है और नही है,का रूप बन जाता है.और अक्स्मात किसी भी बात का चमत्कार करने की हैसियत इनके अन्दर होती है,मिथुन राशि चक्र की प्रथम वायु तत्व वाली राशि है,और इसका स्वामी देवता कुल का पक्षाधारी दूत बुध है,बुध एक ही पल में कहीं से कहीं पहुंच सकता है,यह शरीर मे मष्तिस्क का प्रतिधिनित्व करता है,बुध की धातु पारा है,और इसका स्वभाव जरा सी गर्मी सर्दी मे ऊपर नीचे होने वाला है,इस राशि के जातकों मे दूसरे की मन की बाते पढने,दूरद्रिष्टि,बहुमुखी प्रतिभा,होती है.उनसे अधिक जल्दी से,और अधिक चतुरायी से और अधिक सफ़लता से कार्य करने की क्षमता के कारण कोई दूसरा बराबरी नही कर सकता है.गति (Speed) से उनको प्रेम होता है.एक जगह रहना उनके लिये मौत के समान है,संवेदनशीलता और चंचलता उनका जीवन है.वे अपने और दूसरों के जीवन को अधिक सरस,और सुन्दर बनाने के लिये हमेशा प्रयास रत होते हैं.बौद्धिक संतोष उनकी प्रेरक शक्ति है,जब भी कोई समस्या आती है तो वे लागातार उसकी जडों तक जाने की कोशिश करते रहेंगे.वे अपने विचारों को प्रकट करने के लिये हमेशा अपने दोस्तों और साथियों की तलाश में रहते है.

मिथुन लगन (Gemini)

मिथुन राशि में जन्म लेने के बाद जातक मे चंचलता रहती है.शरीर बलबान नही रह पाता है,आंखों का रंग भूरा या नीला होता है,शरीर का रंग सांवला या गोरा कैसा भी हो सकता है लेकिन बुढापे तक आकर्षण कभी समाप्त नही होता है.जातक दूसरों के घर की बातों को बहुत जल्दी से जान जाता है,और एक दूसरे की बात को स्वभाव के अनुसार प्रसारित करने की अच्छी योग्यता रखता है.जातक के अन्दर भाव होता है कि वह किसी को बसा सकता है तो बसे हुए को उजाड भी सकता है,लम्बा कद और गोल चेहरा हमेशा आकर्षित होता है.स्त्रियां अधिअक्तर पुरुषों मे और पुरुष हमेशा स्त्रियों में अपने को संलग्न रखते है.नाचना,बजाना,कामासुख की तरफ़ अपने लगातार लगाये रखना,हर काम और बात को मजाक के लहजे में ले जाना,दूत कर्म करने वाला,अपने मन से आगे आने वाली समस्या का समाधान बना कर जीवन को भविष्य की आफ़तों से बचा लेना ,अधिक कन्या संतान पैदा करने के बाद दूसरे परिवारों से अपने को जोडकर रिस्तेदारियों को बढाकर परिवारिक माहौल को अपने प्रति वफ़ादार बनाना,अपनी बातों और अपने कामों से पने जीवन साथी को नेस्तनाबूद कर देना,सरकार और ब्याज आदि से पैसा लेने के कारण जीवन में अपने को दूसरों के साथ व्यवहार बनाते रहना आदि कारक जीवन में मिलते हैं,मिथुन लगन वालो की आयु मध्यम होती है,उअन्की जीवन की पहली अवस्था दुखी,और अपने परिवार की अपेक्षा दूसरे परिवारोम के द्वारा सहायता मिलने से जीवन आगे बढता है,मध्यमवस्था में अपने निजी कार्यों के द्वारा अपने लिये साधन इकट्ठे करने में परेशान रहना,और आयु के अन्तिम अवस्था में पूर्ण रूप से सुखी होते ही चल बसना आधि देखे गये हैं.भाग्योदय 32 से 35 साल के मध्य होता है.

मिथुन राशि (Gemini) नक्षत्र चरण फ़ल

मॄगसिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक मंगल-शुक्र हैं.मंगल शक्ति और शुक्र माया है,जातक के अन्दर माया के प्रति बहुत ही बलवती भावना पायी जाती है,भदावरी ज्योतिष के अनुसार जातक अपने जीवन साथी के प्रति हमेशा शक्ति बन कर प्रस्तुत होता है परिणाम स्वरूप जीवन साथी में हमेशा माया के प्रति तकनीकी कारणों का प्रभाव रहता है,और किसी न किसी बात पर हमेशा घरेलू कारणों के लिये खटर पटर चलती रहती है.जीवन साथी से वियोग भी होता है,मगर अधिक दिनों के लिये नही.मंगल और शुक्र की युती के कारण जातक में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है,जातक वाहनों के प्रति इंजीनियरिंग की अच्छी जानकारी रखता है.अधिक तर घरेलू साज सज्जा वाले लोग इसी श्रेणी के अन्दर पैदा होते हैं. 

इस नक्षत्र के चौथे चरण के मालिक मंगल-मंगल होने की कारण जातक जवान का पक्का बन जाता है,अद्भुत शक्ति का मालिक मंगल अगर बानाने के लिये आ जाये तो सब कुछ बनाता चला जाता है,और बिगाडने के लिये शुरु हो जाये तो सब कुछ बिगाड कर फ़ेंक देता है.

आद्रा के प्रथम चरण के मालिक राहु-गुरु हैं,गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का चेला,दोनो मिलकर जातक में आसमानी ताकतों को विस्तारित करने में काफ़ी माहिर करते है,जातक का रुझान अंतरिक्ष में जाने और ब्रहमाण्ड के बारे मे पता करने की योग्यता जन्म जात पैदा होती है.सारी जिन्दगी तकनीकी शिक्षा के मिलने पर वह वायुयान और सेटेलाइट, के बारे में अपनी ज्ञान की सेमा को बढाता रहता है और किसी खराब ग्रह के दखल से वह शिक्षा के प्रति नही जाने पर पराशक्तियों के सहारे सूक्षम आत्मा के द्वारा आसमानीय सैर करता है.
इस नक्षत्र के दूसरे चरण के मालिक राहु-शनि हैं,राहु शनि के साथ मिलने से जातक के अन्दर शिक्षा और शक्ति उतपादित करने वाले कारकों के प्रति ले जाता है.जातक का कार्य शिक्षा स्थानों मे या बिजली,पेट्रोल,या वाहन वाले कामों की तरफ़ अपने को ले जाता है.राहु के सथ शनि के आने से जातक का स्वभाव अपने में ही अधिक्तर सीमित हो जाता है.

इस नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक भी राहु-शनि हैं और जो भी फ़ल मिलता है वह उपरोक्त कारकों के अनुसार ही मिलता है.फ़र्क केवल इतना मिलता है,कि जातक एक दायरे मे रह कर ही कार्य कर पाता है.इस नक्षत्र के मालिक राहु-गुरु है,और इसके फ़ल भी आद्रा नक्षत्र के प्रथम चरण के अनुसार ही मिलते है,फ़र्क इतना होता है,कि जातक का पूरा जीवन कार्योपरान्त फ़ल दायक बनता है.
   
पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण के मालिक गुरु-मंगल हैं,जातक के अन्दर एक मर्यादा जो धर्म में लीन करती है और जातक सामाजिक और धार्मिक कामों में अपने को रत रखता है.गुरु जो ज्ञान का मालिक है,उसे मंगल का साथ मिलने पर उच्च पदासीन करने के लिये और रक्षा आदि विभागो मे कार्य करने के लिये उद्धत करता है.
    
इस नक्षत्र के दूसरे चरण के मालिक गुरु-शुक्र होने से जातक के अन्दर अपने ही विचारों में अपने ही कारणों से उलझने का कारण पैदा होता है,वह अपने ज्ञान को भौतिक सुखों के प्रति खर्च करने की चाहत रखता है.वर्मान के अनुसार जातक ज्ञान और द्र्श्य को बखान करने के प्रति लालियत रहता है.
    इस नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक गुरु-बुध होने से जातक अपने को बौद्धिकता की तरफ़ ले जाता है और वह अपने ज्ञान को बुद्धि के प्रभाव से बखान करने और प्रवचन करने के प्रति मानसिकता रखता है.

मिथुन राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है,जो जातक चन्द्रमा की निरयण समय में जन्म लेते हैं,वे मिथुन राशि के कहे जाते हैं,और जो जातक मिथुन लगन में पैदा होते हैं,वे भी उपरोक्त कारणों के प्रति जाते देखे जाते है.

मिथुन राशि (Gemini)

AUM JYOTISH KENDRAराशि चक्र की यह तीसरी राशि है, इस राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है,इसका विस्तार राशि चक्र के 60 अंश से 90 अंश के बीच है,मिथुन राशि का स्वामी बुध ग्रह है. इस राशि के तेन द्रेष्काणों के स्वामी बुध-बुध,बुध-शुक्र,और बुध-शनि हैं.इस राशि मे मॄगसिरा नक्षत्र के अंतिम दो चरण,आद्रा नक्षत्र के चार चरण,और पुनर्वसु के तीन चरण आते हैं.

Sunday, 18 May 2014

वॄष राशि (Taurus) स्वास्थ्य और रोग

वॄष राशि वालो के लिये अपने ही अन्दर डूबे रहने की और आलस की आदत के अलावा और कोई बडी बीमारी नही होती है,इनमे शारीरिक अक्षमता की आदत नही होती है,इनके अन्दर टांसिल,डिप्थीरिया,पायरिया,जैसे मुँह और गले के रोग होते हैं,जब तक इनके दांत ठीक होते है,यह लोग आराम से जीवन को निकालते हैं,और दांत खराब होते ही इनका जीवन समाप्ति की ओर जाने लगता है.बुढापे में जलोदर और लकवा वाले रोग भी पीछे पड जाते है.

वॄष राशि आर्थिक गतिविधियां (Economical Condition For Taurus)

इस राशि के जातको मे धन कमाने की प्रवॄति और धन को जमा करने की बहुत इच्छा होती है,धन की राशि होने के कारण अक्सर ऐसे जातक खुद को ही धन के प्रयुक्त करते हैं,बुध की प्रबलता होने के कारण जमा योजनाओंमे उनको विश्वास होता है,इस राशि के लोग लेखाकारी,अभिनेता, निर्माता,निर्देशक, कलाकार, सजावट कर्ता, सौन्दर्य प्रसाधन का कार्य करने वाले, प्रसाधन सामग्री के निर्माण कर्ता,आभूषण निर्माण कर्ता,और आभूषण का व्यवसाय करने वाले, विलासी जीवन के साधनो को बनाकर या व्यापार करने के बाद कमाने वाले,खाद्य सामग्री के निर्माण कर्ता, आदि काम मिलते हैं.नौकरी में सरकारी कर्मचारी,सेना या नौसेना मे उच्च पद,और चेहरे आदि तथा चेहरा सम्भालने वाले भी होते हैं.धन से धन कमाने के मामले में बहुत ही भाग्यवान माने जाते हैं.

वॄष राशि (Taurus) की प्रकॄति

वृष राशि वाले जातक शांति पूर्वक रहना पसंद करते हैं,उनको जीवन में परिवर्तन से चिढ सी होती है,इस राशि के जातक अपने को बार बार अलग माहौल में रहना अच्छा नही लगता है.इस प्रकार के लोग सामाजिक होते हैं और अपने से उच्च लोगों को आदर की नजर से देखते है.जो भी इनको प्रिय होते हैं उनको यह आदर खूब ही देते हैं,और सत्कार करने में हमेशा आगे ही रहते है.सुखी और विलासी जीवन जीना पसंद करते हैं.

वॄष (Taurus) लगन

जब चन्द्रमा निरयण पद्धति से वॄष राशि में होता है तो जातक की वॄष राशि मानी जाती है,जन्म समय में जन्म लगन वॄष होने पर भी यही प्रभाव जातक पर होता है.इस राशि मे पैदा होने वाले जातक शौकीन तबियत,सजावटी स्वभाव,जीवन साथी के साथ मिलकर कार्य करने की वॄत्ति,अपने को उच्च समाज से जुड कर चलने वाले,अपने नाम को दूर दूर तक फ़ैलाने वाले,हर किसी के लिये उदार स्वभाव,भोजन के शौकीन,बहुत ही शांत प्रकॄति,मगर जब क्रोध आजाये तो मरने मारने के लिये तैयार,बचपन में बहुत शैतान,जवानी मे कठोर परिश्रमी,और बुढापे में अधिक चिताओं से घिरे रहने वाले,जीवन साथी से वियोग के बाद दुखी रहने वाले,और अपने को एकांत में रखने वाले,पाये जाते हैं.इनके जीवन में उम्र की 45 वीं साल के बाद दुखों का बोझ लद जाता है,और अपने को आराम में नही रखपाते हैं.वॄष पॄथ्वी तत्व वाली राशि और भू मध्य रेखा से 20 अंश पर मानी गई है,वॄष,कन्या,मकर, का त्रिकोण,इनको शुक्र-बुध-शनि की पूरी योग्यता देता है,माया-व्यापार-कार्य,या धन-व्यापार-कार्य का समावेश होने के कारण इस राशि वाले धनी होते चले जाते है,मगर शनि की चालाकियों के कारण यह लोग जल्दी ही बदनाम भी हो जाते हैं.गाने बजाने और अपने कंठ का प्रयोग करने के कारण इनकी आवाज अधिकतर बुलन्द होती है.अपने सहायकों से अधिक दूरी इनको बर्दास्त नही होती है.

वॄष (Taurus) नक्षत्र चरण फ़ल

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  • कॄत्तिका के दूसरे चरण और तीसरे चरण के मालिक सूर्य-शनि,जातक के जीवन में पिता पुत्र की कलह फ़ैलाने मे सहायक होते है,जातक का मानस सरकारी कामों की तरफ़ ले जाने,और सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता देते हैं,पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है.जातक अधिक तर मंगल के बद हो जाने की दशा में शराब,काबाब और भूत के भोजन में अपनी रुचि को प्रदर्शित करता है.
  • कॄत्तिका के चौथे चरण के मालिक सूर्य और गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है,वह जब भी कोई बात करता है तो गर्व की बात करता है,सरकारी क्षेत्रों की शिक्षाये और उनके काम जातक को अपनी तरफ़ आकर्षित करते हैं,और किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है.
  • रोहिणी के प्रथम चरण का मालिक चन्द्रमा-मंगल है,दोनो का संयुक्त प्रभाव जातक के अन्दर मानसिक गर्मी को प्रदान करता है,कल कारखानों,अस्पताली कामों ,और जनता के झगडे सुलझाने का काम जातक कर सकता है,जातक की माता आपत्तियों से घिरी होती है,और पिता का लगाव अन्य स्त्रियों से बना रहता है.
  • रोहिणी के दूसरे चरण के मालिक चन्द्र-शुक्र जातक को अधिक सौन्दर्य बोधी और कला प्रिय बनादेता है.जातक कलाकारी के क्षेत्र मे अपना नाम करता है,माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण मे सामजस्यता लाता है,जातक या जातिका अपने जीवन साथी के अधीन रहना पसंद करता है.
  •  रोहिणी के तीसरे चरण के मालिक चन्द्र-बुध जातक को कन्या संतान अधिक देता है,और माता के साथ वैचारिक मतभेद का वातावरण बनाता है,जातक या जातिका के जीवन में व्यापारिक यात्रायें काफ़ी होती हैं,जातक अपने ही बनाये हुए उसूलों पर अपना जीवन चलाता है,अपनी ही क्रियायों से वह मकडी जैसा जाल बुनता रहता है और अपने ही बुने जाल में फ़ंस कर अपने को समाप्त भी कर लेता है.
  • रोहिणी के चौथे चरण के मालिक चन्द्र-चन्द्र है,जातक के अन्दर हमेशा उतार चढाव की स्थिति बनी रहती है,वह अपने ही मन का राजा होता है.
  • मॄगसिरा के पहले चरण के मालिक मंगल-सूर्य हैं,अधिक तर इस युति मै पैदा होने वाले जातक अपने शरीर से दुबले पतले होने के वावजूद गुस्से की फ़ांस होते हैं,वे अपने को अपने घमंड के कारण हमेशा अन्दर ही अन्दर सुलगाते रहते हैं.उनके अन्दर आदेश देने की वॄति होने से सेना या पुलिस में अपने को निरंकुश बनाकर रखते है,इस तरह के जातक अगर राज्य में किसी भी विभाग में काम करते हैं तो सरकारी सम्पत्ति को किसी भी तरह से क्षति नहीं होने देते.
  • मॄगसिरा के दूसरे चरण के मालिक मंगल-बुध जातक के अन्दर कभी कठोर और कभी नर्म वाली स्थिति पैदा कर देते हैं,कभी तो जातक बहुत ही नरम दिखाई देता है,और कभी बहुत ही गर्म मिजाजी बन जाता है.जातक का मन कम्प्यूटर और इलेक्ट्रोनिक सामान को बनाने और इन्ही की इन्जीनियरिंग की तरफ़ सफ़लता भी देता है.

वॄष राशि (Taurus)

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राशि चक्र की यह दूसरी राशि है,इस राशि का चिन्ह "बैल" है, बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है, साधारणत: वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है. यह स्वभाव वॄष राशि के जातक मे भी पाया जाता है, वॄष राशि का विस्तार राशि चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाया जाता है,इसका स्वामी शुक्र ग्रह है. इसके तीन देष्काणों में उनके स्वामी ’शुक्र-शुक्र”,शुक्र-बुध’,और शुक्र-शनि,हैं. इसके अन्तर्गत कॄत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण, औ मॄगसिरा
के प्रथम दो चरण आते हैं.इन चरणों के स्वामी कॄत्तिका के द्वितीय चरण के स्वामी सूर्य-शनि,तॄतीय चरण के स्वामी चन्द्रमा-शनि,चतुर्थ चरण के स्वामी सूर्य-गुरु,हैं.रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण के स्वामी चन्द्रमा-मंगल, दूसरे चरण के स्वामी चन्द्रमा-शुक्र, तीसरे चरण के स्वामी चन्द्रमा-बुध, चौथे चरण के स्वामी चन्द्रमा-चन्द्रमा, है.मॄगसिरा नक्षत्र के पहले चरण के मालिक मंगल-सूर्य, और दूसरे चरण के मालिक मंगल-बुध है.

Thursday, 1 May 2014

Aries (मेष) Health & Disease For Aries

स्वास्थ्य और रोग - अधिकतर मेष राशि वाले जातकों का शरीर ठीक ही रहता है,अधिक काम करने के उपरान्त वे शरीर को निढाल बना लेते हैं,मंगल के मालिक होने के कारण उनके खून मे बल अधिक होता है,और कम ही बीमार पडते हैं,उनके अन्दर रोगों से लडने की अच्छी क्षमता होती है.अधिकतर उनको अपनी सिर की चोटों से बच कर रहना चाहिये,मेष से छठा भाव कन्या राशि का है,और जातक में पाचन प्रणाली मे कमजोरी अधिकतर पायी जाती है, मल  पेट में जमा होने के कारण सिरदर्द,जलन,तीव्र रोगों,सिर की   बीमारियां, लकवा,मिर्गी, मुहांसे,अनिद्रा,दाद,आधाशीशी,चेचक,और मलेरिया आदि के रोग बहुत जल्दी आक्रमण करते हैं.

मेष आर्थिक गतिविधियां (Economical Condition) For Aries

आर्थिक गतिविधियां - मेष जातकों के अन्दर धन कमाने की अच्छी योग्यता होती है,उनको छोटे काम पसंद नही होते हैं,उनके दिमाग में हमेशा बडी बडी योजनायें ही चक्कर काटा करती है,राजनीति के अन्दर नेतागीरी,संगठन कर्ता,उपदेशक,अच्छा बोलने वाले,कम्पनी को प्रोमोट करने वाले,रक्षा सेवाओं में काम करने वाले,पुलिस अधिकारी,रसायन शास्त्री,शल्य चिकित्सिक,कारखानों ए अन्दर लोहे और इस्पात का काम करने वालेभी होते हैं,खराब ग्रहों का प्रभाव होने के कारण गलत आदतों में चले जाते हैं,और मारकाट या दादागीरी बाली बातें उनके दिमाग में घूमा करतीं हैं,और अपराध के क्षेत्र मे प्रवेश कर जाते हैं.

मेष प्रकॄति (Aries Nature)

मेष प्रकॄति- मेष अग्नि तत्व वाली राशि है,अग्नि त्रिकोण (मेष,सिंह,धनु) की यह पहली राशि है,इसका स्वामी मंगल अग्नि ग्रह है,राशि और स्वामी का यह संयोग इसकी अग्नि या ऊर्जा को कई गुना बढा देती है,यही कारण है कि मेश जातक ओजस्वी,दबंग,साहसी,और दॄढ इच्छाशक्ति वाले होते हैं,यह जन्म जात योद्धा होते हैं.मेश राशि वाले व्यक्ति बाधाओं को चीरते हुए अपना मार्ग बनाने की कोशिश करते हैं.

मेष (Aries) लगन

मेष (Aries) लगन - जिन जातकों के जन्म समय में निरयण चन्द्रमा मेष राशि में संचरण कर रहा होता है,उनकी मेष राशि मानी जाती है,जन्म समय में लगन मे मेष राशि होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है.मेष लगन मे जन्म लेने वाला जातक दुबले पतले शरीर वाला,अधिक बोलने वाला,उग्र स्वभाव वाला, रजोगुणी, अहंकारी, चंचल,बुद्धिमान,धर्मात्मा,बहुत चतुर, अल्प संतति,अधिक पित्त वाला,सब प्रकार के भोजन करने वाला,उदार,कुलदीपक,स्त्रियों से अल्प स्नेह,इनका शरीर कुछ लालिमा लिये होता है. मेष लगन मे जन्म लेने वाले जातक अपनी आयु के 6,8,15,20,28,34,40,45,56, और 63 वें साल में शारीरिक कष्ट और धन हानि का सामना करना पडता है,16,20,28,34,41,48, और 51 साल मे जातक को धन की प्राप्ति वाहन सुख,भाग्य वॄद्धि,आदि विविध प्रकार के लाभ और आनन्द प्राप्त होते हैं.

मेष (Aries) - नक्षत्र चरणफल

नक्षत्र चरणफल -
अश्विनी भदावरी ज्योतिष नक्षत्र के प्रथम चरण के अधिपति केतु-मंगल जातक को अधिक उग्र और निरंकुश बना देता है.वह किसी की जरा सी भी विपरीत बात में या कर्य में जातक को क्रोधात्मक स्वभाव देता है,फ़लस्वरूप जातक बात बात मे झगडा करने को उतारू हो जाता है.जातक को किसी की आधीनता पसंद नही होती है.वह अपने अनुसार ही कार्य और बात करना पसंद करता है.
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  •  दूसरे चरण के अधिपति केतु-शुक्र,जातक को ऐसो आराम की जिन्दगी जीने के लिये मेहनत वाले कार्यों   से दूर रखता है,और जातक विलासी हो जाता है.
  •     तीसरे चरण के अधिपति केतु-बुध जातक के दिमाग में विचारों की स्थिरता लाता है,और जातक जो भी सोचता है,करने के लिये उद्धत हो जाता है.
  •     चौथे चरण के अधिपति केतु-चन्द्रमा जातक में भटकाव वाली स्थिति पैदा करता है,वह अपनी जिन्दगी में यात्रा को महत्व देता है,और जनता के लिये अपनी सहायतायें वाली सेवायें देकर पूरी जिन्दगी निकाल देगा.
 भरणी भदावरी ज्योतिष के प्रथम चरण के अधिपति शुक्र-सूर्य,जातक को अभिमानी और चापलूस प्रिय बनाता है.
दूसरा चरण के अधिपति शुक्र-बुध जातक को बुद्धि वाले कामों की तरफ़ और संचार व्यवस्था से धन कमाने की वॄत्ति देता है.
तीसरे चरण के अधिपति शुक्र-शुक्र विलासिता प्रिय और दोहरे दिमाग का बनाता है,लेकिन अपने विचारों को उसमे सतुलित करने की अच्छी योग्यता होती है.
चौथे चरण के अधिपति शुक्र-मंगल जातक में उग्रता के साथ विचारों को प्रकट न करने की हिम्मत देते हैं,वह हमेशा अपने मन मे ही लगातार माया के प्रति सुलगता रहता है.जीवन साथी के प्रति बनाव बिगाड हमेशा चलता रहता है,मगर जीवन साथी से दूर भी नही रहा जाता है.
    कॄत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण के अधिपति सूर्य-गुरु,जातक में दूसरों के प्रति सद्भावना और सदविचारों को देने की शक्ति देते हैं,वे अपने को समाज और परिवार में शालीनता की गिनती मे आते है.

मेष राशि

मेष (Aries) -
Aum Jyotish Kendraराशि चक्र की यह पहली राशि है,इस राशि का चिन्ह ”मेढा’ या भेडा है,इस राशि का विस्तार चक्र राशि चक्र के प्रथम 30 अंश तक (कुल 30 अंश) है.राशि चक्र का यह प्रथम बिन्दु प्रतिवर्ष लगभग 50 सेकेण्ड की गति से पीछे खिसकता जाता है.इस बिन्दु की इस बक्र गति ने ज्योतिषीय गणना में दो प्रकार की पद्धतियों को जन्म दिया है.भारतीय ज्योतिषी इस बिन्दु को स्थिर मानकर अपनी गणना करते हैं.इसे निरयण पद्धति कहा जाता है.और पश्चिम के ज्योतिषी इसमे अयनांश जोडकर ’सायन’ पद्धति अपनाते हैं.किन्तु हमे भारतीय ज्योतिष के आधार पर गणना करनी चाहिये.क्योंकि गणना में यह पद्धति भास्कर के अनुसार सही मानी गई है. मेष राशि पूर्व दिशा की द्योतक है,तथा इसका स्वामी ’मंगल’ है.इसके तीन द्रेष्काणों (दस दस अंशों के तीन सम भागों) के स्वामी क्रमश: मंगल-मंगल,मंगल-सूर्य,और मंगल-गुरु हैं.मेष राशि के अन्तर्गत अश्विनी नक्षत्र के चारों चरण और कॄत्तिका का प्रथम चरण आते हैं.प्रत्येक चरण 3.20' अंश का है,जो नवांश के एक पद के बराबर का है.इन चरणों के स्वामी क्रमश: अश्विनी प्रथम चरण में केतु-मंगल,द्
वितीय चरण में केतु-शुक्र,तॄतीय चरण में केतु-बुध,चतुर्थ चरण में केतु-चन्द्रमा,भरणी प्रथम चरण में शुक्र-सूर्य,द्वितीय चरण में शुक्र-बुध,तॄतीय चरण में शुक्र-शुक्र,और भरणी चतुर्थ चरण में शुक्र-मंगल,कॄत्तिका के प्रथम चरण में सूर्य-गुरु हैं.

Sunday, 20 April 2014

सूर्य का अन्य ग्रहों से आपसी सम्बन्ध

  •    चन्द्र के साथ इसकी मित्रता है.अमावस्या के दिन यह अपने आगोश में ले लेता है.
  •     मंगल भी सूर्य का मित्र है.
  •     बुध भी सूर्य का मित्र है तथा हमेशा सूर्य के आसपास घूमा करता है.
  •     गुरु यह सूर्य का परम मित्र है,दोनो के संयोग से जीवात्मा का संयोग माना जाता है.गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा.
  •     शनि सूर्य का पुत्र है लेकिन दोनो की आपसी दुश्मनी है,जहां से सूर्य की सीमा समाप्त होती है,वहीं से शनि की सीमा चालू हो जाती है."छाया मर्तण्ड सम्भूतं" के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से शनि की उतपत्ति मानी जाती है.सूर्य और शनि के मिलन से जातक कार्यहीन हो जाता है,सूर्य आत्मा है तो शनि कार्य आत्मा कोई काम नही करती है.इस युति से ही कर्म हीन विरोध देखने को मिलता है.
  •     शुक्र रज है सूर्य गर्मी स्त्री जातक और पुरुष जातक के आमने सामने होने पर रज जल जाता है.सूर्य का शत्रु है.
  •     राहु सूर्य और चन्द्र दोनो का दुश्मन है.एक साथ होने पर जातक के पिता को विभिन्न समस्याओं से ग्रसित कर देता है.
  •     केतु यह सूर्य से सम है.

Sunday, 23 March 2014

"सूर्याष्टक स्तोत्र"

आदि देव: नमस्तुभ्यम प्रसीद मम भास्कर । दिवाकर नमस्तुभ्यम प्रभाकर नमोअस्तु ते ॥
    सप्त अश्व रथम आरूढम प्रचंडम कश्यप आत्मजम । श्वेतम पदमधरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
    लोहितम रथम आरूढम सर्वलोकम पितामहम । महा पाप हरम देवम त्वम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
    त्रैगुण्यम च महाशूरम ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम । महा पाप हरम देवम त्वम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
    बृंहितम तेज: पुंजम च वायुम आकाशम एव च । प्रभुम च सर्वलोकानाम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
    बन्धूक पुष्प संकाशम हार कुण्डल भूषितम । एक-चक्र-धरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
    तम सूर्यम जगत कर्तारम महा तेज: प्रदीपनम । महापाप हरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
    सूर्य-अष्टकम पठेत नित्यम ग्रह-पीडा प्रणाशनम । अपुत्र: लभते पुत्रम दरिद्र: धनवान भवेत ॥
    आमिषम मधुपानम च य: करोति रवे: दिने । सप्त जन्म भवेत रोगी प्रतिजन्म दरिद्रता ॥
    स्त्री तैल मधु मांसानि य: त्यजेत तु रवेर दिने । न व्याधि: शोक दारिद्रयम सूर्यलोकम गच्छति ॥
    सूर्याष्टक सिद्ध स्तोत्र है,प्रात: स्नानोपरान्त तांबे के पात्र से सूर्य को अर्घ देना चाहिये,तदोपरान्त सूर्य के सामने खडे होकर सूर्य को देखते हुए नित्य  पाठ करने चाहिये.

सूर्य के लिये आदित्य मंत्र

विनियोग :- ऊँ आकृष्णेनि मन्त्रस्य हिरण्यस्तूपांगिरस ऋषि स्त्रिष्टुप्छन्द: सूर्यो देवता सूर्यप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
    देहान्गन्यास :- आकृष्णेन शिरसि,रजसा ललाटे,वर्तमानो मुखे,निवेशयन ह्रदये,अमृतं नाभौ,मर्त्यं च कट्याम,हिरण्येन सविता ऊर्व्वौ,रथेना जान्वो:,देवो याति जंघयो:,भुवनानि पश्यन पादयो:.
    करन्यास :- आकृष्णेन रजसा अंगुष्ठाभ्याम नम:,वर्तमानो निवेशयन तर्जनीभ्याम नम:,अमृतं मर्त्यं च मध्यामाभ्याम नम:,हिरण्ययेन अनामिकाभ्याम नम:,सविता रथेना कनिष्ठिकाभ्याम नम:,देवो याति भुवनानि पश्यन करतलपृष्ठाभ्याम नम:
    ह्रदयादिन्यास :- आकृष्णेन रजसा ह्रदयाय नम:,वर्तमानो निवेशयन शिरसे स्वाहा,अमृतं मर्त्यं च शिखायै वषट,हिरण्येन कवचाय हुम,सविता रथेना नेत्रत्र्याय वौषट,देवो याति भुवनानि पश्यन अस्त्राय फ़ट (दोनो हाथों को सिर के ऊपर घुमाकर दायें हाथ की पहली दोनों उंगलियों से बायें हाथ पर ताली बजायें.
    ध्यानम :- पदमासन: पद मकरो द्विबाहु: पद मद्युति: सप्ततुरंगवाहन: । दिवाकरो लोकगुरु: किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देव: ॥
    सूर्य गायत्री :- ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात.
    सूर्य बीज मंत्र :- ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: ऊँ भूभुर्व: स्व: ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्तंच । हिण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: ह्रौं ह्रीं ह्रां ऊँ सूर्याय नम: ॥
    सूर्य जप मंत्र :- ऊँ ह्राँ ह्रीँ ह्रौँ स: सूर्याय नम: ।

सूर्य ग्रह से प्रदत्त व्यापार और नौकरी

स्वर्ण का व्यापार,हथियारों का निर्माण, ऊन का व्यापार,पर्वतारोहण प्रशिक्षण,औषधि विक्रय,जंगल की ठेकेदारी,लकडी या फ़र्नीचर बेचने का काम,बिजली वाले सामान का व्यापार आदि सूर्य ग्रह की सीमा रेखा में आते है.शनि के साथ मिलकर हार्डवेयर का काम,शुक्र के साथ मिलकर पेन्ट और रंगरोगन का काम,बुध के साथ मिलकर रुपया पैसा भेजने और मंगाने का काम,आदि हैं.सचिव,उच्च अधिकारी,मजिस्ट्रेट,साथ ही प्रबल राजयोग होने पर राष्ट्रपति,प्रधान मंत्री,राज्य मंत्री,संसद सदस्य,इन्जीनियर,न्याय सम्बन्धी कार्य,राजदूत,और व्यवस्थापक आदि के कार्य नौकरी के क्षेत्र में आते हैं.सूर्य की कमजोरी के लिये सूर्य के सामने खडे होकर नित्य सूर्य स्तोत्र,सूर्य गायत्री,सूर्य मंत्र आदि का जाप करना हितकर होता है.

सूर्य ग्रह के लिये दान

सूर्य ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिये अपने बजन के बराबर के गेंहूं,लाल और पीले मिले हुए रंग के वस्त्र,लाल मिठाई,सोने के रबे,कपिला गाय,गुड और तांबा धातु,श्रद्धा पूर्वक किसी गरीब ब्राहमण को बुलाकर विधि विधान से संकल्प पूर्वक दान करना चाहिये.

सूर्य ग्रह की जडी बूटियां

बेल पत्र जो कि शिवजी पर चढाये जाते है,आपको पता होगा,उसकी जड रविवार को हस्त या कृत्तिका नक्षत्र में लाल धागे से पुरुष दाहिने बाजू में और स्त्रियां बायीं बाजू में बांध लें,इस के द्वारा जो रत्न और उपरत्न खरीदने में अस्मर्थ है,उनको भी फ़ायदा होगा.

सूर्य ग्रह के रत्न उपरत्न

सूर्य ग्रह के रत्नों मे माणिक और उपरत्नो में लालडी, तामडा,और महसूरी.पांच रत्ती का रत्न या उपरत्न रविवार को कृत्तिका नक्षत्र में अनामिका उंगली में सोने में धारण करनी चाहिये.इससे इसका दुष्प्रभाव कम होना चालू हो जाता है.और अच्छा रत्न पहिनते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा होता देखा गया है.रत्न की विधि विधान पूर्वक उसकी ग्रहानुसार प्राण प्रतिष्ठा अगर नही की जाती है,तो वह रत्न प्रभाव नही दे सकता है.इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी में जडवाने से पहले इसकी प्राण प्रतिष्ठा करलेनी चाहिये.क्योंकि पत्थर तो अपने आप में पत्थर ही है,जिस प्रकार से मूर्तिकार मूर्ति को तो बना देता है,लेकिन जब उसे मन्दिर में स्थापित किया जाता है,तो उसकी विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह मूर्ति अपना असर दे सकती है.इसी प्रकार से अंगूठी में रत्न तभी अपना असर देगा जब उसकी विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी.

सूर्य ग्रह से प्रदान किये जाने वाले रोग -

जातक के गल्ती करने और आत्म विश्लेषण के बाद जब निन्दनीय कार्य किये जाते हैं,तो सूर्य उन्हे बीमारियों और अन्य तरीके से प्रताडित करने का काम करता है,सबसे बडा रोग निवारण का उपाय है कि किये जाने वाले गलत और निन्दनीय कार्यों के प्रति पश्चाताप,और फ़िर से नही करने की कसम,और जब प्रायश्चित कर लिया जाय तो रोगों को निवारण के लिये रत्न,जडी,बूटियां,आदि धारण की जावें,और मंत्रों का नियमित जाप किया जावे.सूर्य ग्रह के द्वारा प्रदान कियेजाने वाले रोग है- सिर दर्द,बुखार,नेत्र विकार,मधुमेह,मोतीझारा,पित्त रोग,हैजा,हिचकी. यदि औषिधि सेवन से भी रोग ना जावे तो समझ लेना कि सूर्य की दशा या अंतर्दशा लगी हुई है.और बिना किसी से पूंछे ही मंत्र जाप,रत्न या जडी बूटी का प्रयोग कर लेना चाहिये.इससे रोग हल्का होगा और ठीक होने लगेगा.

सूर्य प्रत्यक्ष देवता है !

सूर्य प्रत्यक्ष देवता है,सम्पूर्ण जगत के नेत्र हैं.इन्ही के द्वारा दिन और रात का सृजन होता है.इनसे अधिक निरन्तर साथ रहने वाला और कोई देवता नही है.इन्ही के उदय होने पर सम्पूर्ण जगत का उदय होता है,और इन्ही के अस्त होने पर समस्त जगत सो जाता है.इन्ही के उगने पर लोग अपने घरों के किवाड खोल कर आने वाले का स्वागत करते हैं,और अस्त होने पर अपने घरों के किवाड बन्द कर लेते हैं.सूर्य ही कालचक्र के प्रणेता है.सूर्य से ही दिन रात पल मास पक्ष तथा संवत आदि का विभाजन होता है.सूर्य सम्पूर्ण संसार के प्रकाशक हैं.इनके बिना अन्धकार के अलावा और कुछ नही है.सूर्य आत्माकारक ग्रह है,यह राज्य सुख,सत्ता,ऐश्वर्य,वैभव,अधिकार,आदि प्रदान करता है.यह सौरमंडल का प्रथम ग्रह है,कारण इसके बिना उसी प्रकार से हम सौरजगत को नही जान सकते थे,जिस प्रकार से माता के द्वारा पैदा नही करने पर हम संसार को नही जान सकते थे.सूर्य सम्पूर्ण सौर जगत का आधार स्तम्भ है.अर्थात सारा सौर मंडल,ग्रह,उपग्रह,नक्षत्र आदि सभी सूर्य से ही शक्ति पाकर इसके इर्द गिर्द घूमा करते है,यह सिंह राशि का स्वामी है,परमात्मा ने सूर्य को जगत में प्रकाश करने,संचालन करने,अपने तेज से शरीर में ज्योति प्रदान करने,तथा जठराग्नि के रूप में आमाशय में अन्न को पचाने का कार्य सौंपा है.<ज्योतिष< शास्त्र में सूर्य को मस्तिष्क का अधिपति बताया गया है,ब्रह्माण्ड में विद्यमान प्रज्ञा शक्ति और चेतना तरंगों के द्वारा मस्तिष्क की गतिशीलता उर्वरता और सूक्षमता के विकाश और विनाश का कार्य भी सूर्य के द्वारा ही होता है.यह संसार के सभी जीवों द्वारा किये गये सभी कार्यों का साक्षी है.और न्यायाधीश के सामने साक्ष्य प्रस्तुत करने जैसा काम करता है.यह जातक के ह्रदय के अन्दर उचित और अनुचित को बताने का काम करता है,किसी भी अनुचित कार्य को करने के पहले यह जातक को मना करता है,और अंदर की आत्मा से आवाज देता है.साथ ही जान बूझ कर गलत काम करने पर यह ह्रदय और हड्डियों में कम्पन भी प्रदान करता है.गलत काम को रोकने के लिये यह ह्रदय में साहस का संचार भी करता है.

    जो जातक अपनी शक्ति और अंहकार से चूर होकर जानते हुए भी निन्दनीय कार्य करते हैं,दूसरों का शोषण करते हैं,और माता पिता की सेवा न करके उनको नाना प्रकार के कष्ट देते हैं,सूर्य उनके इस कार्य का भुगतान उसकी विद्या,यश,और धन पर पूर्णत: रोक लगाकर उसे बुद्धि से दीन हीन करके पग पग पर अपमानित करके उसके द्वारा किये गये कर्मों का भोग करवाता है.आंखों की रोशनी का अपने प्रकार से हरण करने के बाद भक्ष्य और अभक्ष्य का भोजन करवाता है,ऊंचे और नीचे स्थानों पर गिराता है,चोट देता है.
    श्रेष्ठ कार्य करने वालों को सदबुद्धि,विद्या,धन,और यश देकर जगत में नाम देता है,लोगों के अन्दर इज्जत और मान सम्मान देता है.उन्हें उत्तम यश का भागी बना कर भोग करवाता है.जो लोग आध्यात्म में अपना मन लगाते हैं,उनके अन्दर भगवान की छवि का रसस्वादन करवाता है.सूर्य से लाल स्वर्ण रंग की किरणें न मिलें तो कोई भी वनस्पति उत्पन्न नही हो सकती है.इन्ही से यह जगत स्थिर रहता है,चेष्टाशील रहता है,और सामने दिखाई देता है.
जातक अपना हाथ देख कर अपने बारे में स्वयं निर्णय कर सकता है,यदि सूर्य रेखा हाथ में बिलकुल नही है,या मामूली सी है,तो उसके फ़लस्वरूप उसकी विद्या कम होगी,वह जो भी पढेगा वह कुछ कल बाद भूल जायेगा,धनवान धन को नही रोक पायेंगे,पिता पुत्र में विवाद होगा,और अगर इस रेखा में द्वीप आदि है तो निश्चित रूप से गलत इल्जाम लगेंगे.अपराध और कोई करेगा और सजा जातक को भुगतनी पडेगी.

    सूर्य क्रूर ग्रह भी है,और जातक के स्वभाव में तीव्रता देता है.यदि ग्रह तुला राशि में नीच का है तो वह तीव्रता..
[3/22/2014 11:43:14 PM] Ashish Tripathi:     जातक के लिये घातक होगी,दुनियां की कोई औषिधि,यंत्र,जडी,बूटी नही है जो इस तीव्रता को कम कर सके.केवल सूर्य मंत्र में ही इतनी शक्ति है,कि जो इस तीव्रता को कम कर सकता है.

    सूर्य जीव मात्र को प्रकाश देता है.जिन जातकों को सूर्य आत्मप्रकाश नही देता है,वे गलत से गलत औ निंदनीय कार्य क बैठते है.और यह भी याद रखना चाहिये कि जो कर्म कर दिया गया है,उसका भुगतान तो करना ही पडेगा.जिन जातकों के हाथ में सूर्य रेखा प्रबल और साफ़ होती है,उन्हे समझना चाहिये कि सूर्य उन्हें पूरा बल दे रहा है.इस प्रकार के जातक कभी गलत और निन्दनीय कार्य नही कर सकते हैं.उनका ओज और तेज सराहनीय होता है.

बारह भावों में सूर्य की स्थिति

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  1. प्रथम भाव में सूर्य -स्वाभिमानी शूरवीर पर्यटन प्रिय क्रोधी परिवार से व्यथित धन में कमी वायु पित्त आदि से शरीर में कमजोरी.
  2.     दूसरे भाव में सूर्य - भाग्यशाली पूर्ण सुख की प्राप्ति, धन अस्थिर लेकिन उत्तम कार्यों के अन्दर   व्यय, स्त्री के कारण परिवार में कलह, मुख और नेत्र रोग, पत्नी को ह्रदय रोग. शादी के बाद जीवन साथी के पिता को हानि.
  3.     तीसरे भाव में सूर्य - प्रतापी, पराक्रमी, विद्वान, विचारवान, कवि, राज्यसुख, मुकद्दमे में विजय, भाइयों के अन्दर राजनीति होने से परेशानी.
  4.     चौथे भाव में सूर्य - ह्रदय में जलन, शरीर से सुन्दर, गुप्त विद्या प्रेमी, विदेश गमन, राजकीय चुनाव आदि में विजय, युद्ध वाले कारण, मुकद्दमे आदि में पराजित,व्यथित मन.
  5.     पंचम भाव में सूर्य - कुशाग्र बुद्धि,धीरे धीरे धन की प्राप्ति,पेट की बीमारियां,राजकीय शिक्षण संस्थानो से लगाव,मोतीझारा,मलेरिया बुखार.
  6.     छठवें भाव में सूर्य - निरोगी न्यायवान, शत्रु नाशक, मातृकुल से कष्ट.
  7.     सप्तम भाव में सूर्य - कठोर आत्म रत, राज्य वर्ग से पीडित,व्यापार में हानि, स्त्री कष्ट.
  8.     आठवें भाव में सूर्य - धनी, धैर्यवान, काम करने के अन्दर गुस्सा, चिन्ता से ह्रदय रोग, आलस्य से धन नाश, नशे आदि से स्वास्थ्य खराब.
  9.     नवें भाव में सूर्य - योगी, तपस्वी, ज्योतिषी,साधक,सुखी,लेकिन स्वभाव से क्रूर.
  10.     दसवें भाव में सूर्य - व्यवहार कुशल, राज्य से सम्मान, उदार, ऐश्वर्य, माता को नकारात्मक विचारों से कष्ट, अपने ही लोगों से बिछोह.
  11.     ग्यारहवें भाव में सूर्य - धनी सुखी बलबान स्वाभिमानी सदाचारी शत्रुनाशक, अनायास सम्पत्ति की प्राप्ति, पुत्र की पत्नी या पुत्री के पति (दामाद) से कष्ट.
  12.     बारहवें भाव में सूर्य - उदासीन, आलसी, नेत्र रोगी, मस्तिष्क रोगी, लडाई झगडे में विजय,बहस करने की आदत.

सूर्य के साथ अन्य ग्रहों के अटल नियम

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  •     सूर्य मंगल गुरु=सर्जन
  •     सूर्य मंगल राहु=कुष्ठ रोग
  •     सूर्य मंगल शनि केतु=पिता अन्धे हों
  •     सूर्य के आगे शुक्र = धन हों.
  •     सूर्य के आगे बुध = जमीन हो.
  •     सूर्य केतु =पिता राजकीय सेवा में हों,साधु स्वभाव हो,अध्यापक का कार्य भी हो सकता है.
  •     सूर्य बृहस्पति के आगे = जातक पिता वाले कार्य करे.
  •     सूर्य शनि शुक्र बुध =पेट्रोल,डीजल वाले काम.
  •     सूर्य राहु गुरु =मस्जिद या चर्च का अधिकारी.
  •     सूर्य के आगे मंगल राहु हों तो पैतृक सम्पत्ति समाप्त.

सूर्य का अन्य ग्रहों के साथ होने पर

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सूर्य और चन्द्र दोनो के एक साथ होने पर सूर्य को पिता और चन्द्र को यात्रा मानने पर पिता की यात्रा के प्रति कहा जा सकता है.सूर्य राज्य है तो चन्द्र यात्रा राजकीय यात्रा भी कही जा सकती है.एक संतान की उन्नति जन्म स्थान से बाहर होती है.
    सूर्य और मंगल के साथ होने पर मंगल शक्ति है अभिमान है,इस प्रकार से पिता शक्तिशाली और प्रभावी होता है.मंगल भाई है तो वह सहयोग करेगा,मंगल रक्त है तो पिता और पुत्र दोनो में रक्त सम्बन्धी बीमारी होती है,ह्रदय रोग भी हो सकता है.दोनो ग्रह १-१२ या १७ में हो तो यह जरूरी हो जाता है.स्त्री चक्र में पति प्रभावी होता है,गुस्सा अधिक होता है,परन्तु आपस में प्रेम भी अधिक होता है,मंगल पति का कारक बन जाता है.
    सूर्य और बुध में बुध ज्ञानी है,बली होने पर राजदूत जैसे पद मिलते है,पिता पुत्र दोनो ही ज्ञानी होते हैं.समाज में प्रतिष्ठा मिलती है.जातक के अन्दर वासना का भंडार होता है,दोनो मिलकर नकली मंगल का रूप भी धारण करलेता है.पिता के बहन हो और पिता के पास भूमि भी हो,पिता का सम्बन्ध किसी महिला से भी हो.
    सूर्य और गुरु के साथ होने पर सूर्य आत्मा है,गुरु जीव है.इस प्रकार से यह संयोग एक जीवात्मा संयोग का रूप ले लेता है.जातक का जन्म ईश्वर अंश से हो,मतलब परिवार के किसी पूर्वज ने आकर जन्म लिया हो,जातक में दूसरों की सहायता करने का हमेशा मानस बना रहे,और जातक का यश चारो तरफ़ फ़ैलता रहे,सरकारी क्षेत्रों में जातक को पदवी भी मिले.जातक का पुत्र भी उपरोक्त कार्यों में संलग्न रहे,पिता के पास मंत्री जैसे काम हों,स्त्री चक्र में उसको सभी प्रकार के सुख मिलते रहें,वह आभूषणों आदि से कभी दुखी न रहे,उसे अपने घर और ससुराल में सभी प्रकार के मान सम्मान मिलते रहें.
    सूर्य और शुक्र के साथ होने पर सूर्य पिता है और शुक्र भवन,वित्त है,अत: पिता के पास वित्त और भवन के साथ सभी प्रकार के भौतिक सुख हों,पुत्र के बारे में भी यह कह सकते हैं.शुक्र रज है और सूर्य गर्मी अत: पत्नी को गर्भपात होते रहें,संतान कम हों,१२ वें या दूसरे भाव में होने पर आंखों की बीमारी हो,एक आंख का भी हो सकता है.६ या ८ में होने पर जीवन साथी के साथ भी यह हो सकता है.स्त्री चक्र में पत्नी के एक बहिन हो जो जातिका से बडी हो,जातक को राज्य से धन मिलता रहे,सूर्य जातक शुक्र पत्नी की सुन्दरता बहुत हो.शुक्र वीर्य है और सूर्य गर्मी जातक के संतान पैदा नही हो.स्त्री की कुन्डली में जातिका को मूत्र सम्बन्धी बीमारी देता है.अस्त शुक्र स्वास्थ्य खराब करता है.
    सूर्य और शनि के साथ होने पर शनि कर्म है और सूर्य राज्य,अत: जातक के पिता का कार्य सरकारी हो,सूर्य पिता और शनि जातक के जन्म के समय काफ़ी परेशानी हुई हो.पिता के सामने रहने तक पुत्र आलसी हो,पिता और पुत्र के साथ रहने पर उन्नति नही हो.वैदिक ज्योतिष में इसे पितृ दोष माना जाता है.अत: जातक को रोजाना गायत्री का जाप २४ या १०८ बार करना चाहिये.
    सूर्य और राहु के एक साथ होने पर सूचना मिलती है कि जातक के पितामह प्रतिष्ठित व्यक्ति होने चाहिये,एक पुत्र सूर्य अनैतिक राहु हो,कानून विरुद्ध जातक कार्य करता हो,पिता की मौत दुर्घटना में हो,जातक के जन्म के समय में पिता को चोट लगे,जातक को संतान कठिनाई से हो,पिता के किसी भाई को अनिष्ठ हो.शादी में अनबन हो.
    सूर्य और केतु साथ होने पर पिता और पुत्र दोनों धार्मिक हों,कार्यों में कठिनाई हो,पिता के पास भूमि हो लेकिन किसी काम की नही हो.

Saturday, 22 March 2014

भारतीय ज्योतिष में सूर्य

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भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है.सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं.यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है.सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है,लकडी मिर्च घास हिरन शेर ऊन स्वर्ण आभूषण तांबा आदि का भी कारक है.मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है.शरीर में पेट आंख ह्रदय चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है.और इस ग्रह से आंख सिर रक्तचाप गंजापन एवं बुखार संबन्धी बीमारी होती हैं.सूर्य की जाति क्षत्रिय है.शरीर की बनाव सूर्य के अनुसार मानी जाती है.हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है.सूर्य का अयन ६ माह का होता है.६ माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है,और ६ माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है.इसका रंग केशरिया माना जाता है.धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है.यह पुरुष ग्रह है.इससे आयु की गणना ५० साल मानी जाती है.सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है.सूर्य सप्तम द्रिष्टि से देखता है.सूर्य की दिशा पूर्व है.सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है.सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं.शत्रु शनि और शुक्र हैं.समान देखने वाला ग्रह बुध है.सूर्य की विंशोत्तरी दशा ६ साल की होती है.सूर्य गेंहू घी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है.पित्त रोग का कारण सूर्य ही है.और वनस्पति जगत में लम्बे पेड का कारक सूर्य है.मेष के १० अंश पर उच्च और तुला के १० अंश पर नीच माना जाता है.सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर ० अंश से लेकर १० अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है.सूर्य के देवता भगवान शिव हैं.सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है.सूर्य के नक्षत्र कृतिका का फ़ारसी नाम सुरैया है.और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम ’अ’ ई उ ए अक्षरों से चालू होते हैं.इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है.इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है.

सूर्य का रथ

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इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है, और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।

मानसोत्तर पर्वत

    इस पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसारा स्थित है।
    इस पर्वत के पश्चिम में वरुण की संयमनी स्थित है।
    इस पर्वत के उत्तर में चंद्रमा की सुखा स्थित है।
    इस पर्वत के दक्षिण में यम की विभावरी स्थित है।

सूर्य की चाल

Aum Jyotish Kendraसूर्य भगवान की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक है। उनके साथ-साथ चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। हे राजन्! भगवान भुवन भास्कर इस प्रकार नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तह करते हैं।"

सूर्य के पास

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"हे राजन्! सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।

ज्योतिषां रविरंशुमान - सूर्य की स्थिति

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श्रीमदभागवत पुराण में श्री शुकदेव जी के अनुसार:- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है।

सूर्य आत्मा जगत्स्तथुषश्च - ऋग्वेद

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वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है.समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है.सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है,यह आज एक सर्वमान्य सत्य है.वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे.सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक,सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है.ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है.यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है.छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है.ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है.प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है.सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है.और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है.सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है.सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं.अत: कोई आश्चर्य नही कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है.पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी.बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ.भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है.अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है,कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी.प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे.उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं.वैदिक साहित्य में ही नही आयुर्वेद,ज्योतिष,हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है.

Friday, 14 March 2014

Nature of Rashi

मेष

 मेष –  पुरुष जाति, चरसंज्ञक, अग्नि तत्व, पूर्व दिशा की मालिक, मस्तक का बोध कराने वाली, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, लाल-पीले वर्ण वाली, कान्तिहीन, क्षत्रियवर्ण, सभी समान अंग वाली और अल्पसन्तति है। यह पित्त प्रकृतिकारक है। इसका प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने वाला है।


वृष – स्त्री राशि, स्थिरसंज्ञक, भूमितत्व, शीतल स्वभाव, कान्ति रहित, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, वातप्रकृति, रात्रिबली, चार चरण वाली, श्वेत वर्ण, महाशब्दकारी, विषमोदयी, मध्य सन्तति, शुभकारक, वैश्य वर्ण और शिथिल शरीर है। यह अर्द्धजल राशि कहलाती है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ-बूझकर काम करने वाली और सांसारिक कार्यों में दक्ष होती है। इससे कण्ठ, मुख और कपोलों का विचार किया जाता है।


मिथुन – पश्चिम दिशा की स्वामिनी, वायुतत्व, तोते के समान हरित वर्ण वाली, पुरुष राशि, द्विस्वभाव, विषमोदयी, उष्ण, शूद्रवर्ण, महाशब्दकारी, चिकनी, दिनबली, मध्य सन्तति और शिथिल शरीर है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विद्याध्ययनी और शिल्पी है। इससे हाथ, शरीर के कंधों और बाहुओं का विचार किया जाता है।

कर्क – चर, स्त्री जाति, सौम्य और कफ प्रकृति, जलचारी, समोदयी, रात्रिबली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रक्त-धवल मिश्रित वर्ण, बहुचरण एवं संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा, और कार्यस्थैर्य है। इससे पेट, वक्षःस्थल और गुर्दे का विचार किया जाता है।


सिंह – पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, अग्नितत्व, दिनबली, पित्त प्रकृति, पीत वर्ण, उष्ण स्वभाव, पूर्व दिशा की स्वामिनी, पुष्ट शरीर, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति, भ्रमणप्रिय और निर्जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वरूप मेष राशि जैसा है, पर तो भी इसमें स्वातन्त्र्य प्रेम और उदारता विशेष रूप से विद्यमान है। इससे हृदय का विचार किया जाता है।


कन्या – पिंगल वर्ण, स्त्रीजाति, द्विस्वभाव, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, वायु और शीत प्रकृति, पृथ्वीतत्व और अल्पसन्तान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन जैसा है, पर विशेषता इतनी है कि अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान रखने की यह कोशिश करती है। इससे पेट का विचार किया जाता है।


तुला – पुरुष जाति, चरसंज्ञक, वायुतत्व, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, अल्पसंतान वाली, श्यामवर्ण शीर्षोदयी, शूद्रसंज्ञक, दिनबली, क्रूर स्वभाव और पाद जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, ज्ञानप्रिय, कार्य-सम्पादक और राजनीतिज्ञ है। इससे नाभि के नीचे के अंगों का विचार किया जाता है।


वृश्चिक – स्थिरसंज्ञक, शुभ्रवर्ण, स्त्रीजाति, जलतत्व, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, कफ प्रकृति, बहुसन्तति, ब्राह्मण वर्ण और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव दम्भी, हठी, दृढ़प्रतिज्ञ, स्पष्टवादी और निर्मल है। इससे शरीर के क़द और जननेन्द्रियों का विचार किया जाता है।


धनु – पुरुष जाति, कांचन वर्ण, द्विस्वभाव, क्रूरसंज्ञक, पित्त प्रकृति, दिनबली, पूर्व दिशा की स्वामिनी, दृढ़ शरीर, अग्नि तत्व, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इच्छुक है। इससे पैरों की सन्धि और जंघाओं का विचार किया जाता है।


मकर – चरसंज्ञक, स्त्री जाति, पृथ्वीतत्व, वात प्रकृति, पिंगल वर्ण, रात्रिबली, वैश्यवर्ण, शिथिल शरीर और दक्षिण दिशा की स्वामिनी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उच्च दशाभिलाषी है। इससे घुटनों का विचार किया जाता है।


कुम्भ – पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, वायु तत्व, विचित्र वर्ण, शीर्षोदय, अर्द्धजल, त्रिदोष प्रकृति, दिनबली, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, उष्ण स्वभाव, शूद्र वर्ण, क्रूर एवं मध्य संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, शान्तचित्त, धर्मवीर और नवीन बातों का आविष्कारक है। इससे पेट की भीतरी भागों का विचार किया जाता है।


मीन – द्विस्वभाव, स्त्री जाति, कफ प्रकृति, जलतत्व, रात्रिबली, विप्रवर्ण, उत्तरदिशा की स्वामिनी और पिंगल वर्ण है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उत्तम, दयालु और दानशील है। यह सम्पूर्ण जलराशि है। इससे पैरों का विचार किया जाता है।

Astrology is a Science !


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Effects of micro hyper-bustling universe also does on Earth, solar and Lunar's direct impact we can easily see and understand the implications of Sun energy and moon tide-samud effects of reflux can also understand and see, that short of tidal and parmesan ashtmi to cause the same effect coming tide of brihadDoes the effect of the moon on the water, too, the amount of water that is contained in human beings even more due to the Moon's effect on the human brain does, shall change the day of parmesan crimes can be understood easily, which is their bearing the same date nuts more similar due dates increasing, suicide is more than theThis day in women, appears even more mental stress, the blood flows more to day operations, Shukla is growing more in favor after sunrise, flora vanspatiyon and also increases the effect of more creatures are sfurti, Ayurveda is the science of the moon which is also under the vegetable is the whole world, said that "the world is a mantra of each letter, each vegetable is a drug, and each man is an pahichanne of your properties is required,"Sarvam grahadhin Jagat ", science, that of the Sun is a aflame fireball, jissesbhi planet is born, Gayatri Mantra in the Sun has been considered divine, SB or Russia in the 1920s ' scientific ' chijeviski Sun exploration, every 11 years the Sun is visfot, in whose capacity equals 1000 anubam, this time of upheaval on the Earth, visfot ladai jhagde, killing with each other, are in the same time, the war men's blood gets thinThe stems of the pedon are large annulus in padne, breathing disease also increases up to nabambar from September, start of menstruation in 14, 15, or 16 days the likelihood of conception. so what all astrology is not enough to say the science?