इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है, और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।
मानसोत्तर पर्वत
इस पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसारा स्थित है।
इस पर्वत के पश्चिम में वरुण की संयमनी स्थित है।
इस पर्वत के उत्तर में चंद्रमा की सुखा स्थित है।
इस पर्वत के दक्षिण में यम की विभावरी स्थित है।
मानसोत्तर पर्वत
इस पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसारा स्थित है।
इस पर्वत के पश्चिम में वरुण की संयमनी स्थित है।
इस पर्वत के उत्तर में चंद्रमा की सुखा स्थित है।
इस पर्वत के दक्षिण में यम की विभावरी स्थित है।
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