
मॄगसिरा नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक मंगल-शुक्र हैं.मंगल शक्ति और शुक्र माया है,जातक के अन्दर माया के प्रति बहुत ही बलवती भावना पायी जाती है,भदावरी ज्योतिष के अनुसार जातक अपने जीवन साथी के प्रति हमेशा शक्ति बन कर प्रस्तुत होता है परिणाम स्वरूप जीवन साथी में हमेशा माया के प्रति तकनीकी कारणों का प्रभाव रहता है,और किसी न किसी बात पर हमेशा घरेलू कारणों के लिये खटर पटर चलती रहती है.जीवन साथी से वियोग भी होता है,मगर अधिक दिनों के लिये नही.मंगल और शुक्र की युती के कारण जातक में स्त्री रोगों को परखने की अद्भुत क्षमता होती है,जातक वाहनों के प्रति इंजीनियरिंग की अच्छी जानकारी रखता है.अधिक तर घरेलू साज सज्जा वाले लोग इसी श्रेणी के अन्दर पैदा होते हैं.
इस नक्षत्र के चौथे चरण के मालिक मंगल-मंगल होने की कारण जातक जवान का पक्का बन जाता है,अद्भुत शक्ति का मालिक मंगल अगर बानाने के लिये आ जाये तो सब कुछ बनाता चला जाता है,और बिगाडने के लिये शुरु हो जाये तो सब कुछ बिगाड कर फ़ेंक देता है.
आद्रा के प्रथम चरण के मालिक राहु-गुरु हैं,गुरु आसमान का राजा है तो राहु गुरु का चेला,दोनो मिलकर जातक में आसमानी ताकतों को विस्तारित करने में काफ़ी माहिर करते है,जातक का रुझान अंतरिक्ष में जाने और ब्रहमाण्ड के बारे मे पता करने की योग्यता जन्म जात पैदा होती है.सारी जिन्दगी तकनीकी शिक्षा के मिलने पर वह वायुयान और सेटेलाइट, के बारे में अपनी ज्ञान की सेमा को बढाता रहता है और किसी खराब ग्रह के दखल से वह शिक्षा के प्रति नही जाने पर पराशक्तियों के सहारे सूक्षम आत्मा के द्वारा आसमानीय सैर करता है.
इस नक्षत्र के दूसरे चरण के मालिक राहु-शनि हैं,राहु शनि के साथ मिलने से जातक के अन्दर शिक्षा और शक्ति उतपादित करने वाले कारकों के प्रति ले जाता है.जातक का कार्य शिक्षा स्थानों मे या बिजली,पेट्रोल,या वाहन वाले कामों की तरफ़ अपने को ले जाता है.राहु के सथ शनि के आने से जातक का स्वभाव अपने में ही अधिक्तर सीमित हो जाता है.
इस नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक भी राहु-शनि हैं और जो भी फ़ल मिलता है वह उपरोक्त कारकों के अनुसार ही मिलता है.फ़र्क केवल इतना मिलता है,कि जातक एक दायरे मे रह कर ही कार्य कर पाता है.इस नक्षत्र के मालिक राहु-गुरु है,और इसके फ़ल भी आद्रा नक्षत्र के प्रथम चरण के अनुसार ही मिलते है,फ़र्क इतना होता है,कि जातक का पूरा जीवन कार्योपरान्त फ़ल दायक बनता है.
पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण के मालिक गुरु-मंगल हैं,जातक के अन्दर एक मर्यादा जो धर्म में लीन करती है और जातक सामाजिक और धार्मिक कामों में अपने को रत रखता है.गुरु जो ज्ञान का मालिक है,उसे मंगल का साथ मिलने पर उच्च पदासीन करने के लिये और रक्षा आदि विभागो मे कार्य करने के लिये उद्धत करता है.
इस नक्षत्र के दूसरे चरण के मालिक गुरु-शुक्र होने से जातक के अन्दर अपने ही विचारों में अपने ही कारणों से उलझने का कारण पैदा होता है,वह अपने ज्ञान को भौतिक सुखों के प्रति खर्च करने की चाहत रखता है.वर्मान के अनुसार जातक ज्ञान और द्र्श्य को बखान करने के प्रति लालियत रहता है.
इस नक्षत्र के तीसरे चरण के मालिक गुरु-बुध होने से जातक अपने को बौद्धिकता की तरफ़ ले जाता है और वह अपने ज्ञान को बुद्धि के प्रभाव से बखान करने और प्रवचन करने के प्रति मानसिकता रखता है.
मिथुन राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है,जो जातक चन्द्रमा की निरयण समय में जन्म लेते हैं,वे मिथुन राशि के कहे जाते हैं,और जो जातक मिथुन लगन में पैदा होते हैं,वे भी उपरोक्त कारणों के प्रति जाते देखे जाते है.